भारत देश को व्रत और त्योहारों का देश कहा जाता है. यहाँ पर सभी त्योहारों को बहुत ही खास और श्रद्धा भाव से मनाया जाता है.
नवरात्र :-
- इन व्रत और त्योहारों में नवरात्र का बहुत महत्व होता है.
- नवरात्र के नौ दिनों में माँ दुर्गा की ख़ास पूजा उपासना की जाती है. पुरे साल में चार नवरात्र मनाये जाते हैं.
- चैत्र नवरात्र, वासंतीय नवरात्र, अश्विन नवरात्र और शारदीय नवरात्र…. माघ नवरात्रि या शिशिर नवरात्र की तरह सभी ऋतु में शक्ति पूजा का नौ दिवसीय विधान मनाया जाता है.
- ऊपर बताए गए चारों नवरात्रों को दो भागों में बांटा गया है. पहला प्राकट्य नवरात्र और गुप्त नवरात्र.
- कलयुग में चैत्र और अश्विन नवरात्र को प्राकट्य नवरात्र माना जाता है और आषाढ़ एवं मार्गशीष नवरात्रि गुप्त नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं.
- महाकाल संहिता में लिखा है की सतयुग में चैत्र नवरात्र, त्रेता युग में आषाढ़ नवरात्र, द्वापर युग में माघ नवरात्रि और कलयुग में अश्विन नवरात्र प्रमुख रूप से मनाए जाते हैं. लेकिन इसके साथ ही शाक्त ग्रंथों में लिखा है कि ऊपर बताए गए चारों नवरात्रों में शक्ति पूजा का महत्व होता है.
- जुलाई के महीने में गुप्त नवरात्र का पर्व मनाया जाता है. इस नवरात्र में शुंभ निशुंभ का वध करने वाली मां सरस्वती की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है.
- इसके अलावा इन नवरात्रों में शाकंभरी पूजन का भी महत्व है. गुप्त नवरात्रों में आप अपनी सभी गुप्त मनोकामना के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना कर सकते हैं.
एकादशी व्रत :-
- जुलाई के महीने में 3 एकादशी मनाई जाती है.
- मेदिनी ज्योतिष में बताया गया है की 1 महीने में 3 एकादशी पडना शुभ संकेत होता है.
- इस महीने में योगिनी एकादशी, देवशयनी एकादशी, कामिका एकादशी मनाई जाती है. एकादशी एक नित्य प्रकार का व्रत होता है.
- इस व्रत में उपवास रखा जाता है और शाम के समय पूजा और कथा सुनी जाती है.
- इसके बाद फलाहार किया जाता है. एकादशी के व्रत में पका हुआ भोजन नहीं किया जाता है.
प्रदोष व्रत :-
- धर्म पुराणों में प्रदोष व्रत का भी बहुत महत्व बताया गया है.
- प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है.
- प्रदोष व्रत में पूरा दिन निराहार रहकर शाम के समय सूर्यास्त से 3 घड़ी पहले नहा कर भगवान शिव की पंचोपचार या षोडशोपचार के साथ पूजा की जाती है.
- इसके साथ ही शिव तांडव स्त्रोत और प्रदोष स्त्रोत का पाठ करना शुभ होता है.
- प्रदोष व्रत में शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करना शुभ माना जाता है.
- इसके बाद प्रदोष व्रत कथा सुननी चाहिए और सबसे अंत में ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.
सत्यनारायण व्रत :-
हिंदू धर्म में सत्यनारायण व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को सत्यनारायण भगवान की कथा सुननी चाहिए.
श्रावण कृष्ण चतुर्थी :-
श्रावण कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रत करना शुभ होता है. इस व्रत में कथा सुनने के बाद रात में चंद्रमा दर्शन करने और उसे अर्ध्य देने के बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए.
रथोत्सव :-
- रथोत्सव का त्योहार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में पुण्य नक्षत्र युक्त द्वितीय तिथि को मनाया जाता है.
- यह त्यौहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. इस त्यौहार में भगवान विष्णु या उनके अवतार श्री कृष्ण, श्री राम आदि को श्रद्धा पूर्वक रथ पर बैठा कर पूरे नगर में घुमाया जाता है.
- उड़ीसा में मौजूद पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बहुत धूमधाम से निकाली जाती है.
- इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा भगवान बलराम और उनकी बहन सुभद्रा भी रथ पर विराजमान रहते हैं. रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है.
- रथ यात्रा की यह परंपरा पुराने जमाने से राजा इंद्रधनुष के शासन काल से ही चली आ रही है.
- पुरी में रथोत्सव का त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है.
- द्वितीय से नवमी तक भगवान गुंडिचा मंदिर में आराम करते हैं.
- गुंडिचा मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ बलराम और सुभद्रा के निवेदन पर किया था.
- इसी वजह से गुंडिचा स्थान को भगवान का जन्म स्थान भी माना जाता है.
- इस मंदिर में भगवान अपनी इच्छा से साल में एक बार यात्रा करते हैं.
- आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भगवान विष्णु गुंडिचा मंदिर से रथ के द्वारा ही अपने निवास स्थान जगन्नाथ मंदिर के लिए दोबारा प्रस्थान करते हैं.
- ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु के गुंडिचा मंदिर में निवास के दौरान चारों तीर्थ स्थान वहीं उपस्थित रहते हैं. अगर कोई मनुष्य इस दौरान वहां रहकर स्नान करके भगवान की दर्शन पूजा और उपासना करता है तो उसे सभी तीर्थों के लाभ मिल जाते हैं. उस मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों गुणों की प्राप्ति होती है.
हेरा पंचमी :-
- हेरा पंचमी आषाढ़ शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है.
- हेरा पंचमी रथ यात्रा के पांचवें दिन मनाई जाती है.
- यह त्योहार उड़ीसा में बहुत खास तौर पर मनाया जाता है.
- पुरी में रथ उत्सव के दौरान हेरा पंचमी का त्योहार मनाया जाता है.
- इस दिन लक्ष्मी जी गुस्से में गुंडिचा क्षेत्र में प्रस्थान करती हैं और लौटते वक्त रथ को नुकसान पहुंचा कर हेरागैरी साईं से होकर जगन्नाथ मंदिर में वापस आते हैं.
कुमार षष्ठी :-
- आषाढ़ शुक्ल पक्ष में पंचमी युक्त षष्ठी को कुमार षष्ठी या स्कंद षष्ठी का त्यौहार मनाया जाता है.
- यह व्रत कार्तिकेय जी को समर्पित है. इसी वजह से इसे कुमार षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है.
- आषाढ़ शुक्ल पंचमी को व्रत करना शुभ होता है.
- इस दिन कार्तिकेय जी का पूजन पूरे श्रद्धा भाव से करना चाहिए और पूरे दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन ग्रहण करना चाहिए.
कर्दम षष्ठी :-
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कर्दम षष्ठी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन महिलायें षष्ठी ग्रह की पूजा करके अपने पुत्रों की सुरक्षा और उन्नति की कामना करती हैं. यह व्रत मुख्य रूप से बंगाल में मनाया जाता है.
महिषगणि व्रत :-
- आषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन महिषगणि व्रत किया जाता है.
- इस दिन मनुष्य को व्रत रखना चाहिए.
- व्रत करने वाले व्यक्ति को स्नान करने के लिए हल्दी और सुगंधित द्रव्य युक्त जल का इस्तेमाल करना चाहिए.
- इसके बाद महिषगणि देवी की मूर्ति की स्थापना करके उनका विधिवत पूजन करके पूरी श्रद्धा भाव से प्रार्थना करनी चाहिए.
- इस दिन माँ महिषगणि को नैवेद्य में चीनी और गुड़ से युक्त पदार्थों का भोग लगाना चाहिए.
- इसके बाद ब्राह्मण और कन्याओं को भोजन करवा कर दान दक्षिणा देनी चाहिए.
- इसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.
भड़लया नवमी :-
- आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भड़लया नवमी का त्योहार मनाया जाता है.
- भडल्या नवमी को अबूझ मुहूर्त मानते हैं.
- उत्तर भारत में भड़ल्या नवमी के मौके पर विवाह जैसे मंगल कार्य संपन्न किए जा सकते हैं.
- वैसे भी भड़ल्या नवमी के दिन गुप्त नवरात्र खत्म होते हैं.
- इसी वजह से इस तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी :-
- आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन वामन पूजा की जाती है. भगवान वामन विष्णु भगवान के अवतार हैं.
- इस दिन भगवान वामन की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाएं.
- अब भगवान् वामन को यथाविधि आसन देकर पंचोपचार से भगवान वामन की पूजा करें.
- अगर आपके पास भगवान वामन की तस्वीर या मूर्ति नहीं है तो उसकी जगह पर आप शालिग्राम जी का पूजन भी कर सकते हैं.
देवशयनी एकादशी :-
- देवशयनी एकादशी के दिन चातुर्मास की शुरुआत होती है.
- चतुर्मास्य में भगवान पाताल लोक में राजा बलि के यहां जाकर निवास करते हैं और 4 महीनों के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन वापस आते हैं.
- कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है.
- इस समय में शादी और दूसरे मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं.
- चतुर्मास्य भगवान की वंदना के लिए महत्वपूर्ण और विशेष समय होता है.
- 4 महीनों के समय में संकल्प लेकर एक स्थान पर रहकर विशेष प्रकार की साधनाएं करना अच्छा होता है.
- संत और ऋषि मुनि लोग चातुर्मास के दौरान किसी एक शहर या स्थान पर रहकर खास पूजा और साधनाएं करते हैं. चातुर्मास में उपवास करने का विशेष महत्व है. जो मनुष्य चातुर्मास में उपवास रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
- उपवास के अलावा कुछ वर्जनाओं का पालन करना भी जरूरी होता है. जिनमें से मुख्य हैं…
- चातुर्मास के दौरान पृथ्वी पर सोना चाहिए.
- इन 4 महीनों में पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए.
- तेल का सेवन नहीं करना चाहिए. दूध और दही का त्याग करना शुभ होता है.
- चातुर्मास के दौरान गुड़, शहद, नमक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.
- इस समय शाक चावल आदि का सेवन करना अच्छा नहीं माना जाता है.
- मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. चातुर्मास में अहिंसा धर्म का पालन करना चाहिए.
- इस दौरान शस्त्र का त्याग करना चाहिए. हमेशा सत्य बोलना चाहिए और किसी भी व्यक्ति पर क्रोध नहीं करना चाहिए. चातुर्मास में संत संगति करनी चाहिए.
हरी पूजा :-
आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को हरी पूजा की जाती है. हरी पूजा के दिन पूरा दिन व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है. हरी पूजा के दिन दान का खास महत्व होता है.
कोकिला व्रत :-
- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा से कोकिला व्रत की शुरुआत होती है.
- यह व्रत आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर श्रावण पूर्णिमा तक चलता है.
- यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत शुभ होता है.
- कोकिला व्रत में माता गौरी की पूजा और उपासना कोयल के रूप में करने का नियम है.
- कोकिला व्रत शुरू करने से पहले यह संकल्प लेना चाहिए “मैं धनधान्य आदि सहित सौभाग्य प्राप्ति हेतु शंकर और पार्वती की पुष्टि के लिए पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए कोकिला व्रत का उपवास करूंगी” इस व्रत में स्नान करने का खास महत्व है.
- व्रत के दिनों में स्नान की अलग-अलग विधियां बताई गई है.
- यह विधियां प्रयुक्त द्रव्य और औषधियों पर आधारित होती हैं.
- पहले 24 दिनों में 8-8 दिनों के तीन वर्गों में विभाजित किया गया है और इन तीन भागों के लिए अलग-अलग विधियां बताई गई हैं.
- बाकी बचे 6 दिन के लिए अलग विधि है.
- पहले 8 दिन तक पीसे हुए आंवलों को भिगोकर उसमें तेल मिलाकर पूरे शरीर की मालिश की जाती है.
- उसके बाद के 8 दिनों में 10 औषधियों को पानी में मिलाकर नहाया जाता है.
- दस बस औषधियां कूट, जटा मासी, दोनों प्रकार की हल्दी, मुरा, शिलाजीत, चंदन, बच, चंपक, नागर मोथा है.
- इन 8 दिनों के बाद फिर से 8 दिन तक पिसी हुई वच को जल में भीगा कर उस पानी से नहाया जाता है.
- इसके बाद आखिरी के 6 दिनों में पिसे हुए तिल आंवले और सर्व औषधि के पानी में नहाना चाहिए.
- हर दिन नहाने के बाद पीठि के द्वारा बनाई गई कोयल की पूजा करनी चाहिए.
- तिल तंदुल आदि का नैवेद्य बना कर कोकिला को अर्पण करना चाहिए. इसके बाद यह प्रार्थना करनी चाहिए.
तिलसनेहे तिलसौख्ये तिलवरने तिलामाये सौभाग्यधानपुत्रांश्च देहि में कोकिल नमः
प्रार्थना करने के बाद कोकिला व्रत की कथा सुननी चाहिए.
कोकिला व्रत की कथा इस प्रकार है
“सती जी के पिता दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया, पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया. सती जी ने पिता के मोह में आकर बिना निमंत्रण के ही वहां जाने का निश्चय किया और भगवान शिव से जिद करके आ यज्ञ में आ गयी. जब सती जी अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां यज्ञ में पहुंची तो दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया. भगवान शिव के इस अपमान को सती सहन नहीं कर पायी और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दिया. जब भगवान शिव को सती जी की मृत्यु का समाचार मिला तो वह बहुत ही क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष प्रजापति का यज्ञ खंडित करने के लिए भेजा. वीरभद्र ने भगवान शिव की आज्ञा का पालन करते हुए दक्ष प्रजापति के यज्ञ को खंडित कर दिया और बहुत सारे देवी देवताओं के अंग भंग कर दिए. ऐसी परिस्थिति देखकर भगवान विष्णु बहुत ही चिंता में आ गए और शंकर जी के पास गए. उन्होंने भगवान शिव से देवताओं को पुनः उनके असली स्वरूप में लाने की प्रार्थना की, पर उन्होंने सती जी की को क्षमा नहीं किया और उन्हें यह श्राप दिया कि वह 10000 सालों तक कोकिला के रूप में ही रहेंगी. इस श्राप से ग्रस्त होकर माता सती 10 वर्षों तक कोकिला के रूप में नंदनवन में निवास करती रही. इसके बाद उन्होंने पार्वती का जन्म लेकर 1 महीने तक यह कोकिला व्रत पूरी श्रद्धा और निष्ठा भाव से किया. जिसके फल में उन्हें भगवान शिव से पति के रूप में प्राप्त हुए. श्रावण पूर्णिमा के दिन अंतिम प्रहर में कोकिला की मूर्ति को सोने के पंख लगा कर और रत्नों से आंखें बनाकर नए वस्त्र और आभूषणों से सजाना चाहिए और फिर से ब्राम्हण या सास-ससुर को दान करना चाहिए. इस व्रत को करने से स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है और जीवन में कभी भी सुख वैभव आदि की कमी नहीं रहती है.