राशियों के नाम : –भचक्र पर बारह राशियाँ होती हैं जो इस प्रकार से हैं :- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि।
राशियों के स्वामी ग्रह: – मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है. वृष व तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है. मिथुन व कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है. कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है. सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है. धनु व मीन राशि का स्वामी ग्रह गुरु है. मकर व कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि है.
राहु/केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती है, ये जिस राशि में बैठ जाते है उसी राशि की तरह काम करते हैं.
राशियों का रंग : – मेष राशि का रंग लाल है, वृष राशि का रंग कपूर जैसा है, मिथुन का हरा रंग, कर्क का गुलाबी रंग, कन्या राशि रंग बिरंगी अथवा चित्र-विचित्र कह सकते है, सिंह राशि का पीला, तुला का सफेद, वृश्चिक का काला, धनु के पहले भाग का स्वर्णिम रंग तो दूसरे भाग का पीला रंग, मकर का पिंगल रंग, कुम्भ का विचित्र वर्ण, मीन राशि जैसे की नाम से ही स्पष्ट है – मछली जैसा भूरा रंग.
राशियों की कीटादि संज्ञा : – मेष राशि, सिंह राशि, धनु का पिछला भाग तथा मकर राशि का पूर्वार्द्ध चतुष्पद की श्रेणी में आते हैं अथवा इन्हें चौपाया भी कहा जाता है (जो चार पैरों से चलते है). कर्क तथा वृश्चिक राशि को कीट की श्रेणी में रखा गया है. मकर राशि का पिछला भाग तथा मीन राशि को जलचर की श्रेणी में रखा गया है. मिथुन, तुला, कन्या, कुम्भ तथा धनु के पूर्वार्द्ध भाग को द्विपद की श्रेणी में रखा गया है.
राशि अनुसार नक्षत्र क्रम और नामाक्षर : – हर राशि में नौ नक्षत्र चरण आते है और हर चरण को एक नामाक्षर मिला हुआ है. मेष राशि में अश्विनी और भरणी नक्षत्र के चार चरण और कृत्तिका नक्षत्र का एक चरण आता है. चू,चे,चो,ला,ली,लू,ले,लो,अ ये नौ अक्षर आते है.
वृष राशि में कृत्तिका के तीन चरण, रोहिणी के चार चरण,मृगशिरा के दो चरण आते हैं. इसमें इ,उ,ए,ओ,वा,वि,वू,वे,वो अक्षर आते हैं.
मिथुन राशि में मृगशिरा नक्षत्र के दो चरण, आर्द्रा के चार चरण, पुनर्वसु के तीन चरण आते हैं. इसमें का,की,कू,घ,ड़,छ,के,को,हा नामाक्षर आते है.
कर्क राशि में पुनर्वसु का एक चरण,पुष्य के चार चरण और आश्लेषा के चार चरण आते हैं. इसमें ही,हू,हे,हो, डा,डी,डू,डे,डो नामाक्षर आते हैं.
सिंह राशि में मघा नक्षत्र के चार चरण, पूर्वाफाल्गुनी के चार चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है. इस राशि में मा,मी,मू,में,मो,टा,टी,टू,टे नामाक्षर आते हैं.
कन्या राशि में उत्तराफाल्गुनी के तीन चरण, हस्त के चार चरण और चित्रा के दो चरण आते हैं.
इस राशि में टो,पा,पी,पू,ष,ण,ढ पे,पो नामाक्षर आते हैं.
तुला राशि में चित्रा नक्षत्र के दो चरण, स्वाति नक्षत्र के चार चरण और विशाखा नक्षत्र के तीन चरण आते है. रा,री,रू,रे,रो,ता,ती,तू,ते नामाक्षर इस राशि में आते हैं.
वृश्चिक राशि में विशाखा का चौथा चरण, अनुराधा के चार चरण और ज्येष्ठा के चार चरण आते हैं. इस राशि में तो,ना,नी,नू,ने,नो,या,यी,यू नामाक्षर आते हैं.
धनु राशि में मूल के चार चरण, पूर्वाषाढ़ा के चार चरण और उत्तराषाढ़ा का पहला चरण आता है. ये,यो,भा,भी,भू,धा,फा,ढा,भी नामाक्षर आते हैं.
मकर राशि में उत्तराषाढ़ा के बाद के तीन चरण, श्रवण के चार चरण और धनिष्ठा के पहले दो चरण आते हैं. इस राशि में भो,जा,जी,खी,खू,खे,खो,गा,गी नामाक्षर आते हैं.
कुम्भ राशि में धनिष्ठा के बाद के दो चरण, शतभिषा के चार चरण और पूर्वाभाद्रपद के पहले तीन चरण आते हैं. इस राशि में गू,गे,गो,सा,सी,सू,से,सो,दा नामाक्षर आते हैं.
मीन राशि में पूर्वाभाद्रपद का चौथा चरण, उत्तराभाद्रपद के चार चरण और रेवती के चार चरण आते हैं. इस राशि में दी,दू,ध,झ,ञ,दो,दे,चा,ची नामाक्षर आते हैं.
विशेष : –अभिजीत नक्षत्र को मकर राशि में उत्तराषाढ़ा और श्रवण नक्षत्र के मध्य रखा गया है अत: इस नक्षत्र के चार नामाक्षर भी मकर राशि में ही गिने जाते हैं. जू,जे,जो,खा ये चार अक्षर आते हैं तो इस प्रकार मकर राशि में कुल १३ नामाक्षर हो जाते हैं.
लग्नादि बारह भाव: –जन्म कुंडली में कुल बारह भाव होते हैं जिन्हे विभिन्न नाम दिए गए हैं और जैसा उनका नाम है वैसा ही उनका काम है. पहला भाव-तनु भाव, दूसरा भाव-धन भाव, तीसरा भाव-सहज भाव, चौथा भाव-सुख भाव, पांचवा भाव-पुत्र भाव, छठा भाव-शत्रु अथवा रिपु भाव, सातवां भाव-दारा अथवा कलत्र भाव, आठवां भाव-आयु भाव, नवम भाव-भाग्य भाव, दशम भाव-कर्म भाव, एकादश भाव-आय भाव तथा बारहवां भाव-व्यय भाव कहलाता हैं.
आनन्दादि योग : –ये २८ प्रकार के योग होते हैं और इनका फल इनके नाम के अनुसार ही होता है, जैसे आनंद योग आनंददायक होता है तो कालदण्ड योग कष्टकारक व मृत्युकारक भी हो सकता है.
यहां वार के जो नक्षत्र बताये जा रहे हैं वहां से दिन नक्षत्र तक गिने जो संख्या मिले वही आनन्दादि योग होता है. गणना अभिजीत सहित करनी है. जब तक नक्षत्र रहता है योग भी तब तक ही रहता है.
रविवार – अश्विनी, सोमवार – मृगशिरा, मंगलवार – आश्लेषा, बुधवार – हस्त, बृहस्पतिवार – अनुराधा, शुक्रवार – उत्तराषाढ़ा, शनिवार – शतभिषा से गिनती करें.
आनन्दादि योगों के नाम : – १) आनंद २) कालदण्ड ३) धूम्र ४) प्रजापति ५) सौम्य ६) ध्वांक्ष ७) ध्वज ८) श्रीवत्स ९) वज्र १०) मुद्गर ११) छत्र १२) मित्र १३) मानस १४) पद्म १५) लुम्ब १६) उत्पात १७) मृत्यु १८) काण १९) सिद्धि २०) शुभ २१) अमृत २२) मुसल २३) गद २४) मातंग २५) राक्षस २६) चर २७) स्थिर २८) वर्धमान.
अमृतसिद्धि योग : – वारों में ख़ास नक्षत्र के होने से ये योग बनता है. रविवार को हस्त नक्षत्र, सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र, मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र, बुधवार को अनुराधा नक्षत्र, गुरूवार को पुष्य नक्षत्र, शुक्रवार को रेवती नक्षत्र और शनिवार को रोहिणी नक्षत्र पड़ने पारा अमृतसिद्धि योग बनता है. ये सभी शुभ कामों में ग्राह्य होते हैं.
यमघण्ट योग : – दिए नक्षत्र जब भी दिए वार में पड़ जाए तो यमघण्ट योग बनता है, ये सभी कामों में वर्जित होते हैं – रविवार को मघा नक्षत्र, सोमवार को विशाखा, मंगलवार को आर्द्रा, बुधवार को मूल, गुरुवार को कृत्तिका, शुक्रवार को रोहिणी और शनिवार को हस्त नक्षत्र.
सिद्धि योग : – शुक्रवार को नंदा तिथि जो प्रतिपदा,षष्ठी व एकादशी है, पड़ जाए तो सिद्धि योग होता है. इसी प्रकार बुधवार को भद्रा तिथि (२,७,१२), मंगलवार को जया तिथि (३,८,१३), शनिवार को रिक्ता तिथि (४,९,१४) और गुरूवार को पूर्णा तिथि (५,१०,१५,३०) हो तो तिथि व वार का ये संयोग सिद्धि योग बनाता है.
मृत्यु योग : – नंदा तिथियों की युति रविवार या मंगलवार से हो, भद्रा तिथियों की युति सोमवार या शुक्रवार से हो, जया तिथियों की युति बुधवार से हो, रिक्ता तिथियों की युति गुरूवार से हो और पूर्णा तिथियों की युति शनिवार से हो तो मृत्यु नाम का अशुभ योग बनता है. इस योग को वैसे तो सभी कामों में त्यागा जाता है लेकिन यात्रा में विशेष रूप से इसे त्याग देना चाहिए.
क्रकच योग : – शनिवार को षष्ठी तिथि, शुक्रवार को सप्तमी तिथि, गुरूवार को अष्टमी तिथि, बुधवार को नवमी तिथि, मंगलवार को दशमी तिथि, सोमवार को एकादशी तिथि, रविवार को द्वादशी तिथि हो तब तिथि व वार की ये युति क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ है. दूसरे शब्दों में कहें तो जब वार की संख्या और तिथि की संख्या का योग १३ आता है तब ये योग बनता है जिसे सभी मंगल कार्यों में त्यागा जाता है.
संवर्तक योग : – बुधवार को प्रथमा तिथि हो और रविवार को सप्तमी तिथि हो तो तिथि व वार की यह युति एक अशुभ योग बनाती है जिसे संवर्तक योग कहते हैं.
गण्डान्त योग : – आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती नक्षत्रों की अंतिम २ घटी (४८ मिनट) और अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्रों की प्रारम्भिक २ घटी (४८ मिनट) का समय नक्षत्र गण्डान्त कहलाता है, जिसे सभी अच्छे कार्यों में त्यागना चाहिए.
तिथि गण्डान्त : – पूर्णा तिथियां (५,१०,१५,३०) की अंतिम एक घटी (२४ मिनट) और नंदा तिथियों (१,६,११) की प्राम्भिक एक घटी (२४ मिनट) का समय संधि अथवा तिथि गण्डान्त कहलाता है और इसे सभी शुभ कामों में त्यागा जाता है.
लग्न गण्डान्त : –मीन, वृश्चिक तथा कर्क राशि के अंत की आधी-आधी घटी (१२ मिनट), मेष, धनु तथा सिंह राशि के प्रारम्भ की आधी-आधी घटी (१२ मिनट) से लग्न गण्डान्त होता है. इसका भी शुभ कामों में त्याग करना चाहिए.