किसी भी मनुष्य के पिछले जन्म में किए गए पाप कर्म के अनुसार उसकी कुंडली में केमद्रुम योग, हृद योग, काक योग, दरिद्र योग, हुताशन योग, रेका योग, शकट योग, ऋण योग, मृत्यु योग, दुयोग, मृति योग, निर्भाग्य योग आते हैं. यह सभी योग मनुष्य के जीवन में संकटों का कारण बनते हैं. कुंडली के इनको योगों को दूर करने के लिए जाप, पूजा, अनुष्ठान और यंत्र तंत्र का सहारा लेना पड़ता है. इन योगो को दूर करने के लिए व्यक्ति को धन ऐश्वर्य देने वाले यंत्र राज श्री यंत्र का भी सहारा लिया जा सकता है.
श्रीयंत्र का स्वरुप :-
- धर्म पुराणों में श्री यंत्र की रचना के बारे में बताया गया है. श्रीयंत्र के बिंदु त्रिकोण वसुकोण दशार युग्म चतुर्दशार नाग दल षोडश तीन व्रत और भूपुर से बना है.
- इसमें चार मुख वाले शिव त्रिकोण, पांच मुख वाले शक्ति त्रिकोण मौजूद होते है. ये सभी आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.
- श्री यंत्र मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष प्रदान करता है. श्री यंत्र की कृपा से मनुष्य को अष्ट सिद्धि और नौ निधियों की कृपा मिलती है.
- श्री यंत्र की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करने से मनुष्य को 10 महाविद्याओं की कृपा भी मिलती है. श्री यंत्र को सोने-चांदी, स्फटिक, भोजपत्र आदि से बनाया जाता है.
श्री यंत्र से जुड़ी खास बातें :-
- शास्त्रों में बताया गया है कि जैसे आत्मा और शरीर में कोई भेद नहीं होता है. उसी प्रकार यंत्र और देवता में भी कोई अंतर नहीं होता है.
- यंत्र को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार यंत्र और मंत्र मिलकर शीघ्र फल प्रदान करते हैं. मंत्रों में शक्ति वाणी के द्वारा आती है और यही शक्ति यंत्रों की रेखाओं और उसके बिंदुओं में निवास करती है.
- श्रीयंत्र में मां लक्ष्मी का निवास माना जाता है. श्री यंत्र मां धन की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी का प्रतीक है. इसे षोडशी यंत्र भी कहा जाता है.
- भोजपत्र द्वारा बना हुआ श्री यंत्र साधारण रूप से फल प्रदान करता है. श्री यंत्र ताम्रपत्र पर अधिक, चांदी पर श्रेष्ठ और सोने से बना होने पर सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है. स्फटिक और मणि आदि से बना हुआ श्री यंत्र भी बहुत शुभ होता है.
श्रीयंत्र का महत्व :-
- अलग-अलग प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर स्थापित श्री यंत्रों की महिमा सभी जानते हैं. तिरुपति बालाजी के मंदिर में षोडशी श्री यंत्र की स्थापना की गई है.
- जगन्नाथ जी के मंदिर में भैरवी श्री यंत्र और श्री नाथ जी के मंदिर में सुदर्शन श्री यंत्र की स्थापना की गई है. जो यंत्रों की महानता का विशेष उदाहरण है.
- इन सभी तीर्थ स्थानों में अपार धन-संपत्ति मौजूद है. अलग-अलग तांत्रिक ग्रंथों में श्रीयंत्र की महिमा का विवरण दिया गया है.
- श्रीयंत्र में सभी देवी देवताओं का निवास होता है. श्री यंत्र का निर्माण सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, रवि पुष्य, गुरु पुष्य योग, चारों नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि आदि दिनों में किया जाना उत्तम होता है.
- श्री यंत्र का निर्माण बहुत ही कठिन है. जिसे हर कोई नहीं कर सकता है. श्री यंत्र का निर्माण सिर्फ कर्मकांड जानने वाले विद्वान पंडितों के द्वारा ही करवाना चाहिए.
- प्राण प्रतिष्ठा युक्त श्री यंत्र बहुत जल्दी फल प्रदान करते हैं. यदि प्राण प्रतिष्ठा संभव ना हो तो किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान संस्थान से प्रतिष्ठा यंत्र खरीदा जा सकता है और शुभ मुहूर्त में किसी पंडित के द्वारा स्थापित कराया जा सकता है.
- नियमित रूप से श्री यंत्र की पूजा करना शुभ होता है. श्री यंत्र की पूजा में पवित्रता का ध्यान रखना जरूरी होता है. श्री यंत्र की पूजा करने के लिए नियमित रूप से श्रीसूक्त के 12 अध्याय का पाठ करें और मां लक्ष्मी के किसी एक मंत्र का रोजाना एक माला जाप करें.
- मां लक्ष्मी के मंत्र का जाप करने से धन की कमी दूर हो जाती है और मनुष्य संपन्न और ऐश्वर्य शाली बन जाता है. महालक्ष्मी के मंत्र का जाप हमेशा कमलगट्टे की माला से करना चाहिए.
- यदि आपके पास कमलगट्टे की माला नहीं है तो आप रुद्राक्ष की माला से भी मन्त्र का जाप कर सकते हैं.
- श्री यंत्र की साधना करने से मां लक्ष्मी के साथ-साथ सभी देवता देवी-देवताओं की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है, पर किसी भी अवस्था में मनुष्य को सदाचार नहीं छोड़ना चाहिए और हमेशा अपने चरित्र में बल बनाए रखना चाहिए.
- मांस मदिरा और बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए. यंत्र, तंत्र, मंत्र देवी देवता, यज्ञ, औषधि, तीर्थ और गुरु में की पूजा में सबसे जरूरी होती है श्रद्धा.
- श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करने से ही पूजा सफल होती है. श्री यंत्र में इतना आकर्षण होता है कि सिर्फ इसका दर्शन करने से मनुष्य को लाभ मिलता है.