शिव पुराण में बताया गया है कि आशुतोष और भूत भावन माने जाने वाले भगवान भोलेनाथ प्राणियों का कल्याण करने के लिए धरती पर लिंग के रूप में निवास करते हैं. जिस पुण्य स्थान पर भक्तजनों ने श्रद्धा पूर्वक भोलेनाथ की पूजा अर्चना की भगवान शिव वहां पर सदैव के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए. वैसे तो पूरे संसार में असंख्य शिवलिंग मौजूद हैं, पर इनमें से 12 ज्योतिर्लिंग सर्व प्रधान माने जाते हैं. शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों की व्याख्या दी गई है.
बारह ज्योतिर्लिंग :-
- श्री केदारनाथ
- श्री सोमनाथ
- श्री वैद्यनाथ
- श्री मल्लिकार्जुन
- श्री भीम शंकर
- श्री महाकालेश्वर
- श्री नागेश्वर
- श्री विश्वनाथ
- श्री रामेश्वर
- श्री घुश्मेश्वर
- श्री त्रयंबकेश्वर
- श्री ओमकारेश्वर
1. श्री केदारनाथ :- केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय के केदार नामक स्थान पर मौजूद है. केदारनाथ की प्राकृतिक छटा और अत्यंत मनोरम दृश्य लोगों का मन मोह लेते हैं. केदारनाथ के पश्चिमी भाग में मंदाकिनी नदी के किनारे केदारेश्वर महादेव मंदिर मौजूद है. केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से मनुष्य को धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है. इसके अलावा इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करने से और मंदाकिनी नदी में स्नान करने से भक्तों को अलौकिक और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है, साथ ही केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है.
2. श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग :- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे विश्व प्रसिद्ध मंदिर में स्थापित है. पहले इस क्षेत्र को प्रभाष के नाम से जाना जाता था. यही पर भगवान श्री कृष्ण ने जरा नामक व्यक्ति के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का अंत किया था. पावन प्रभाष क्षेत्र में मौजूद इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन महाभारत श्रीमद् भागवत और स्कंद पुराण में मिलता है. चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है. चंद्रमा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी. तभी से इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन और आराधना करने से मनुष्य को जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है. जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग की श्रद्धा पूर्वक पूजा-अर्चना करता है उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
3. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग :- वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग बिहार झारखंड प्रांत के संथाल परगना जिले में मौजूद है. हमारे पुराणों और शास्त्रों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन मिलता है. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग 11 अंगुल ऊंचा है. भक्तों के लिए वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन बहुत ही कल्याणकारी है. बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं और अपने साथ तीर्थों का जल लाकर शिवजी पर अर्पित करते हैं. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं. हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि जो भी मनुष्य वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं और उस पर भगवान भोलेनाथ की कृपा हमेशा बनी रहती है. भगवान शिव के वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से दैहिक, दैविक भौतिक कष्ट दूर रहते हैं.
4. श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग :- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के किनारे शैल पर्वत पर मौजूद है. इस पर्वत को दक्षिण का कैलाश पर्वत भी माना जाता है. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत पद्म पुराण शिव पुराण आदि धर्म ग्रंथों में भी मिलती है. शिवरात्रि के अवसर पर यहां पर बहुत बड़ा मेला आयोजित किया जाता है. धर्म पुराणों में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन विस्तार में किया गया है. जो भी मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन पूजन और अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से शारीरिक मानसिक दैविक भौतिक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग खुल जाता है.
5. श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग :- भीम शंकर ज्योतिर्लिंग गोहाटी के पास ब्रह्म पूर्व पहाड़ी पर स्थित है. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के बारे में हमारे पुराणों में कई प्रकार की कथाओं का वर्णन किया गया है. इसके अलावा यह मंदिर सहयाद्री पर्वत पर मौजूद है. यहां से भीमा नदी निकलती है और नदी का जल धीरे-धीरे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पर गिरता है.
6. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग :- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है. उज्जैन को अवन्तिपुरी भी कहा जाता है. महाकाली कवि कालिदास के समय इस देश का बहुत महत्व था. उज्जैन को भारत की परम पवित्र सप्तपुरीयों में से एक माना जाता है. यहां पर भगवान शिव हुंकार के साथ प्रकट हुए थे. इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है.
7. श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग :- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत के द्वारिकापुरी से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम भगवान शिव के आदेश पर रखा गया था. इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. हमारे शास्त्रों में इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन किया गया है. ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इस ज्योतिर्लिंग के अवतरण की कथा सुनता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं और वह समस्त सुख और समृद्धियों का भोग करने के पश्चात मोक्ष को प्राप्त होता है.
8. श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग :- विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी काशी में मौजूद है. हमारे पुराणों में काशी नगरी की महानता का वर्णन किया गया है. शास्त्रों में बताया गया है की प्रलय आने पर भगवान शिव ने इस नगरी को नष्ट होने से बचाने के लिए इसे अपनी त्रिशूल की नोक पर उठा लिया था और प्रलय समाप्त होने पर इसे फिर से अपने स्थान पर रख दिया था. काशी को सृष्टि की आदि स्थली के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहां पर भगवान विष्णु ने सृष्टि की कामना से कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था. इसके अलावा अगस्त्यमुनि ने भी यहां पर कठोर तप करके भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया था. इस पवित्र काशी नगरी के उत्तर में ओंकार खंड, दक्षिण में केदारखंड और मध्य में विश्वेश्वर खंड स्थित है. प्रसिद्ध विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर खंड में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन पूजन और आराधना करने से भक्तों के सभी पाप दूर हो जाते हैं.
9. श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग :- श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने सेतु बंध के दौरान की थी. इस शिवलिंग की स्थापना का उल्लेख रामायण में किया गया है. जब भगवान श्री राम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे तब इसी जगह पर उन्होंने समुद्र के किनारे बालू से शिवलिंग का निर्माण करके उसका पूजन किया था. एक कथा के अनुसार इस स्थान पर पहुंचकर जब भगवान रामचंद्र पानी पीने लगे तब आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना जल कैसे ग्रहण कर सकते हो. इस आकाशवाणी को सुनने के बाद भगवान श्री राम ने बालू से शिवलिंग का निर्माण करके पूजा की और भगवान भोलेनाथ से लंका पर विजय प्राप्त करने का वरदान मांगा. भोलेनाथ ने श्री राम से प्रसन्न होकर उन्हें उनका मनचाहा वरदान प्रदान किया. सभी लोगों ने लोक कल्याण करने के लिए भगवान भोलेनाथ को ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां पर निवास करने प्रार्थना की. तब भोलेनाथ ने सबकी प्रार्थना को स्वीकार किया. तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहां पर मौजूद है.
10. श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग :- घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रदेश के दौलताबाद से 20 किलोमीटर दूर वेरुल गांव के पास विराजित है. पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है. पुराणों के अनुसार दक्षिण देश में देव गिरी पर्वत के नजदीक सुधर्मा नामक एक तेजस्वी धर्मात्मा ब्राह्मण निवास करता था. उसकी पत्नी का नाम सुमेधा था. दोनों में बहुत प्रेम था, पर इनकी कोई भी संतान नहीं थी. ज्योतिषियों से पूछने पर उन्होंने बताया कि सुमेधा कभी भी मां नहीं बन सकती है, परंतु सुमेधा संतान प्राप्त करने के लिए लालायित थी. उन्होंने अपने पति से आग्रह किया कि वह दूसरा विवाह कर ले. तब सुधर्मा ने अपनी पत्नी की छोटी बहन से विवाह किया, जिसका नाम घुश्मा था. घुश्मा स्वभाव से सदाचारी और भोलेनाथ की बहुत बड़ी भक्त थी. वह रोजाना 108 पार्थिव शिवलिंग बनाकर निष्ठा पूर्वक उनकी पूजा करती थी. भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसके गर्भ से एक अत्यंत सुंदर और स्वस्थ पुत्र ने जन्म लिया. पर सुमेधा में जलन की वजह से घुश्मा के पुत्र को मार दिया, पर परम शिव भक्त सती घुश्मा के आराध्य शिव ने फिर से घुश्मा के पुत्र को जीवित कर दिया और खुद घुश्मेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के नाम से वहां विराजमान हुए.
11. श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग :- त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक के पश्चिम में 35 किलोमीटर दूर मौजूद है. गौ हत्या के पाप से बचने के लिए महर्षि गौतम ने अपनी पत्नी के साथ इसी स्थान पर शिव की आराधना और तपस्या की थी. भगवान् शिव गौतम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न हुए और भगवान शिव ने प्रकट होकर महर्षि गौतम से वरदान मांगने के लिए कहा,महर्षि गौतम ने शिव से कहा भगवान मेरी इच्छा है कि आप मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त करें. तब भगवान शिव ने कहा कि तुम सदा सर्वथा निर्दोष हो, गौ हत्या का पाप तुम्हारे ऊपर छल पूर्वक लगाया गया था. धोखे से ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं अवश्य दंड दूंगा. तब गौतम ऋषि बोले हे प्रभु उन्हीं की वजह से मुझे आपका दर्शन और आशीर्वाद मिला है. इसलिए उन्हें मेरा हितेषी समझकर उन्हें क्षमा कर दें. ऋषि-मुनियों और देव गणों ने यहां इकट्ठा होकर गौतम ऋषि की बात का समर्थन करते हुए भगवान शिव से वहां हमेशा निवास करने का आग्रह किया. तब भगवान शिव उनकी बात मान कर वहां पर त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से विराजमान हो गए. महर्षि गौतम द्वारा लाई गई गंगा जी भी ज्योतिर्लिंग के नजदीक गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगी. त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग को समस्त गुणों का आधार माना जाता है.
12. श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग :- ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के किनारे विराजमान है. यहां पर नर्मदा नदी के दो धाराएं अलग बहती हैं जिसके कारण यह जगह त्रिभुजाकार हो गई है. इसलिए इसे मांधाता पर्वत या शिवपुरी भी कहा जाता है. नर्मदा नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तरी पार से और दूसरी दक्षिणी पार से होकर गुजरती है. दक्षिणी धारा को मुख्यधारा कहा जाता है. इसी मांधाता पर्वत पर श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है. यह ज्योतिर्लिंग मनुष्यों के द्वारा निर्मित किया हुआ नहीं बल्कि स्वयं प्रकृति के गर्भ से निर्मित होकर निकला है. इस ज्योतिर्लिंग के चारों तरफ जल भरा रहता है. मांधाता पर्वत को शिव का स्वरूप माना जाता है इसी वजह से इसे शिवारी भी कहते हैं. जो भी मनुष्य भक्ति और श्रद्धापूर्वक ओमकारेश्वर की परिक्रमा करते हैं उनके सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाते हैं. यहां पर ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप मौजूद हैं. जिसमें एक अमलेश्वर भी कहे जाते हैं. अलग होते हुए भी दोनों को एक ही रूप में गिना जाता है. भगवान ओमकारेश्वर की कृपा प्राप्त होने मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.