आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी के नाम से जाना जाता है, और शुक्ल पक्ष की हरशयनी एकादशी को 4 मास के लिए भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं. व्रत के तीन प्रकार होते हैं…. नित्य व्रत, नैमित्तिक व्रत और काम्य व्रत. नित्य व्रत वो होता है जिसको नहीं करने से मनुष्य को पाप लगता है. नैमित्तिक व्रत पापों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है और काम्य व्रत अपने किसी खास कामना की पूर्ति करने के लिए किया जाता है. एकादशी व्रत नित्य व्रत है.
यानी कानि च पापणी ने ब्रहमहत्यादिकानि च अननमाश्रित्य तिष्ठन्ति सम्प्राप्ते हरिवासर अंध से केवलम भुक्ते यो भुक्ते हरिवासर तद्दीनीं सर्वपापानी वसन्त्यन्नश्रितानी
इस श्लोक का अर्थ है ब्रहम हत्या जैसे सभी पाप एकादशी के दिन अन्न में मौजूद होते हैं. इसलिए एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति भोजन करता है वह पाप युक्त भोजन का भागीदार हो जाता है.
नारद पुराण के अनुसार :-
- नारद जी ने व्यवस्था दी है कि जो मनुष्य 8 साल से अधिक अवस्था का है और 80 वर्ष से कम आयु का है अगर वह मोहवश एकादशी के दिन भोजन करता है तो वह पाप का भागीदार बन जाता है.
- नारद पुराण के अनुसार विष्णु के भक्त और जो विष्णु को अपना परम लक्ष्य मानते हैं उन्हें हमेशा हर पक्ष में एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए.
- कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति विष्णु को अपना परम लक्ष्य मानता है और विष्णु भक्त है, जो संसार सागर के पार उतरना चाहता है, या जो व्यक्ति ऐश्वर्य, संतति, स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति चाहता है उसे हमेशा दोनों पक्षों की एकादशी के दिन उपवास करना चाहिए.
- दोनों पक्षों की एकादशी पर एकादशी व्रत केवल उन्हीं लोगों के लिए जरूरी है जो गृहस्थ नहीं है.
- गृहस्थ लोगो के लिए केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ही व्रत किया जाना चाहिए.
- कृष्ण पक्ष की एकादशी में नहीं… क्योंकि देवल में आया है कि दोनों पक्षों की एकादशी में पका भोजन नहीं करना चाहिए.
- यह वन में रहने वाले ऋषि और मुनियों का धर्म है, पर गृहस्थ को ऐसा केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन करना चाहिए.
- पुराण के अनुसार गृहस्थ को केवल आषाढ़ शुक्ल में आने वाली देवशयनी और बोधिनी जो कार्तिक मास शुक्ल के बीच में आती है वाली कृष्ण एकादशी को व्रत करना चाहिए.
- दूसरी कृष्ण पक्ष की एकादशी पर लोगों को उपवास नहीं करना चाहिए.
- एकादशी के उपवास के दो प्रकार होते हैं. केवल उपवास और उपवास व्रत ..दोनों में मुख्य अंतर यह है कि पहले में कोई संकल्प नहीं होता है.
- मनुष्य केवल पके भोजन का त्याग करता है, पर दूसरी एकादशी में संकल्प लिया जाता है और बहुत सारी अन्य बातें भी होते हैं.
एकादशी का महत्व :-
- प्रथम एकादशी में सभी लोग यहां तक पुत्रवान तक कृष्ण पक्ष में इसे करते हैं, पर दूसरी एकादशी में संततिमान, गृहस्थ से कृष्ण पक्ष में नहीं करते हैं.
- ऐसे में उन्हें संकल्प नहीं करना चाहिए .उसे केवल पके भोजन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का विधि पूर्वक पालन करना चाहिए.
- देवशयनी एवं बोधिनी एकादशी के बीच कृष्ण पक्ष की एकादशी पर भी व्रत करना चाहिए.
- 2 महीनों में 24 तथा अधिक मास में दो कुल 26 एकादशी मनाई जाती हैं.
- सभी एकादशी के अलग-अलग नाम है. एकादशी की शुरुआत मार्गशीर्ष अगहन महीने के कृष्ण पक्ष से शुरू होती है.
- इसे भगवान विष्णु का विग्रह माना जाता है.
एकादशी महीने :-
- भगवद्वचनामृत से ये बात सिद्ध है की “मासानां मार्गशीर्षोहम” इस मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है.
- इसी प्रकार पौष मास के कृष्ण पक्ष में उत्पन्ना नामक एकादशी मनाई जाती है.
- इसी क्रम में शुक्ल पक्ष में मोक्षदा एकादशी आती है.
- इसी प्रकार पौष मास में सफला और पुत्रदा नाम की और माघ में षटतिला और जाया नाम की एकादशी मनाई जाती है.
- फाल्गुन मास में क्रमशः कृष्ण पक्ष में विजय और शुक्ल पक्ष में अमला की नाम की एकादशी मनाई जाती है.
- चैत्र मास में पापमोचनी और कामदा एकादशी मनाई जाती है.
- वैशाख के महीने में वरुथिनी और मोहिनी एकादशी होती है.
- ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा और शुक्ल पक्ष में निर्जला तथा भीमसेनी एकादशी मनाई जाती है. आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी के नाम से जाना जाता है.
- शुक्ल पक्ष में हरिशयनी और देव शयनी एकादशी मनाई जाती है.
- इस दिन से 4 महीने के लिए भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं.
- सावन के महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी का कामिका और शुक्ल पक्ष की पुत्रदा और भाद्रपद में अजया और पदमा एकादशी मनाई जाती है. अश्विन महीने में इंदिरा और पापाकुंशा और कार्तिक मास में रंभा और देव उठानी नाम की एकादशी मनाई जाती है.
- इन 12 महीनों की 24 एकादशीओं के अलावा पुरुषोत्तम महीने अर्थात अधिक मास में क्रमशः कमला तथा कामदा नाम की एकादशी मनाई जाती है.
व्रत विधि :-
- एकादशी व्रत करने के लिए दशमी तिथि को व्रत करने वाले व्यक्ति को स्नान करने के बाद विष्णु जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए और षोडशोपचार ओं के साथ उनका पूजन करना चाहिए.
- पूजन करने के बाद भगवान को जल से अर्घ्य देते हुए यह संकल्प लें “हे कमल के समान नेत्रों वाले भगवान विष्णु…. मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करने का संकल्प लेता हूं.
- आप ही मेरे रक्षक है.” व्यक्ति को दशमी की रात्रि में भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और जमीन पर सोना चाहिए. पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए और जितनी बार हो सके “ओम नमो नारायण” मंत्र का जाप करना चाहिए.
- एकादशी को स्नान करने के बाद व्यक्ति को यह प्रार्थना करनी चाहिए “हे विष्णु भगवान आज मैं आपकी प्रसन्नता के लिए दिन और रात में संयम नियम के द्वारा पालन करूंगा.
- मेरी सोई हुई इंद्रियों के द्वारा कोई विकल्प या भोजन या मैथुन की क्रिया हो जाए तो मुझे क्षमा करें.
- इसके अलावा अगर मेरे दातों में पहले से अन्य सटा हुआ हो तो है पुरुषोत्तम मेरी इस गलती को क्षमा करें” इसके बाद भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराकर चंदन आदि से पूजन करना चाहिए.
- मनुष्य को विष्णु सूक्त या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए और भगवान विष्णु से संबंधित मंत्रों का जितना हो सके जाप करना चाहिए.
- एकादशी के दिन उपवास करना चाहिए और 11 क्रियाओं का त्याग करना चाहिए.
- एकादशी के दिन बार-बार जलपान ना करें.
- अपने अंदर की हिंसात्मक प्रवृत्ति का त्याग करें.
- अपवित्रता से बचें.
- असत्य भाषण ना करें.
- पान दातून ना चबाये.
- एकादशी के दिन दिन में सोना वर्जित होता है.
- पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें.
- जुआ ना खेले.
- एकादशी के दिन रात में सोना और पतित मनुष्यों से बात करना वर्जित होता है.
- एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को रात में जागरण करना चाहिए.
- रात के समय एकादशी कथा सुनकर भगवान विष्णु के स्रोतों का पाठ मंत्रों का जाप और भजन को सुनना चाहिए.
- द्वादशी के दिन उक्त समस्त नियमों का पालन करते हुए शरीर और बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए.
- स्नान करने के बाद भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए है “विष्णु भगवान हे गरुड़ध्वज आज सब पापों का नाश करने वाली पुण्य मई द्वादशी तिथि मुझे प्राप्त हुई है. इसमें में पारण करने जा रहा हूं. मेरे व्रत से आप प्रसन्न होकर मुझ पर अपनी कृपा बरसाए.”
- उक्त प्रार्थना को करने के बाद भगवान विष्णु के विग्रह को दूध से स्नान करवाना चाहिए, और निम्न प्रार्थना करनी चाहिए.
“अज्ञात भीतिरांधेस वृतेनानें केशव प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव”
- इसके बाद ब्राह्मणों को विधि पूर्वक भोजन करवाना चाहिए और उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार दान दक्षिणा देनी चाहिए. उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.
पुराणों के अनुसार :-
- वराह पुराण में बताया गया है कि ब्रह्मा ने कुबेर को एकादशी दी और कुबेर ने एकादशी को उस व्यक्ति को सौंप दिया जो संयमित रहता है, शुद्ध रहता है, केवल वही खाता है जो पका हुआ नहीं है.
- कुबेर प्रसन्न होने पर धन-संपत्ति प्रदान करते हैं .
- नारद पुराण में बताया गया है कि एकादशी व्रत से उत्पन्न अग्नि से सभी जन्मों में किए गए पाप हवनकुंड में जलकर नष्ट हो जाते हैं.
- अश्वमेध जैसे सहस्त्रओं यज्ञ एकादशी पर किए गए उपवास के १६वें अंश तक भी नहीं पहुंच पाते हैं. यह एकादशी व्रत करने से मनुष्य को स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- यह एकादशी करने से राज्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. अच्छी पत्नी मिलती है और शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है. गंगा, गया, काशी, पुष्कर ,कुरुक्षेत्र, नर्मदा देवी का यमुना चंद्रभागा में स्नान करने के बाद भी एकादशी व्रत करने के समान पुण्य नहीं मिलता है.
- पद्मा पुराण में बताया गया है कि एकादशी का नाम मात्र सुनने से यमदूत भाग जाते हैं.
- गुरु पुराण के अनुसार अगर एक पलड़े पर पूरी पृथ्वी का ध्यान रख दिया जाए और दूसरे पलड़े पर एकादशी तो एकादशी माह पूर्णतया और श्रेष्ठ रहती है.
- वस्तुतः एकादशी पर किए जाने वाले व्रत की अंतर हित धारणा सिद्ध होती है.
- यह मन का अनुशासन है. इसका मतलब यह है कि प्रसन्नता पूर्वक व्रत करने से मनुष्य मन में रहने वाली वासना से मुक्ति मिलती है. और मन की ऐसी अवस्था हो जाती है जैसे परमात्मा का अनुग्रह प्राप्त होता है.
26 एकादशी के नाम :-
चैत्र शुक्ल – कामदा एकादशी
वैशाख – कृष्ण वरुथिनी एकादशी
वैशाख – शुक्ल मोहिनी एकादशी
जेष्ठ- कृष्ण अपरा एकादशी
जेष्ठ- शुक्ल निर्जला एकादशी
आषाढ़ – कृष्ण योगिनी एकादशी
आषाढ़ – शुक्ल देवशयनी एकादशी
श्रावण – कृष्ण कामिका एकादशी
श्रावण – शुक्ल पुत्रदा एकादशी
भाद्रपद – कृष्ण अजा एकादशी
भाद्रपद – शुक्ल पद्मा जलझूलनी एकादशी
अश्विन – कृष्ण इंदिरा एकादशी
अश्विन – शुक्ल पापाकुशा एकादशी
कार्तिक – कृष्ण रंभा रमा एकादशी
कार्तिक – शुक्ल देव प्रबोधिनी एकादशी
मार्गशीर्ष – कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
मार्गशीर्ष – शुक्ल मोक्षदा एकादशी
पौष – कृष्ण सफला एकादशी
पौष – शुक्ल पुत्रदा एकादशी
माघ – कृष्ण षटतिला एकादशी
माघ – शुक्ला एकादशी
फाल्गुन – कृष्ण विजया एकादशी
फाल्गुन – शुक्ल आमला आमलकी एकादशी
चैत्र – कृष्ण पापमोचनी एकादशी
अधिक मास – कृष्ण कमला एकादशी
अधिक मास – शुक्ल कामदा एकादशी