शिव शंकर भोलेनाथ को तीनों लोकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है. भोलेनाथ की पूजा स्वयं विष्णु और ब्रह्मा भी करते हैं. अर्थात भोलेनाथ शिव शंकर सर्वशक्तिमान और सर्व पूज्य माने जाते है. सृष्टि के निर्माण के बाद ब्रह्मा जी का कार्य खत्म हो जाता है. भगवान विष्णु सृष्टि का पालन पोषण और रक्षा करने का काम करते हैं, पर सृष्टि के लगातार चलते रहने के कारण संसार में जो असंतुलन पैदा होता है उसको नियंत्रण करने की जिम्मेदारी शिव भगवान् की है. इसीलिए शास्त्रों में शिव की भूमिका संहारक मानी जाती है, पर हम आपको बता दें की शिव केवल संघार नहीं करते हैं या सिर्फ मृत्यु नहीं देते हैं बल्कि शिव को मृत्युंजय माना जाता है. शिव समन्वय के देवता माने जाते हैं. वह चीजों का संघार करके नए बीजों का निर्माण करने के लिए जगह रिक्त करते हैं. आप शिव की भूमिका को उस सुनार और लोहार की तरह समझ सकते हैं जो अच्छे आभूषण और औजार का निर्माण करने के लिए सोने और लोहे को आग में तपाने का काम करते हैं ताकि वह उससे सुंदर आभूषण और उपयोगी औजार का निर्माण कर सकें. शिव का स्वरूप कई प्रतीकों का समन्वय है. शिव के आसपास की वस्तुएं, आभूषण और उनके हथियार ऐसे हैं जिससे उन्हें शक्ति प्राप्त होती है. आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से शिव के शक्ति स्रोतों के बारे में बताने जा रहे हैं.
- शिव का अर्धनारीश्वर रूप :- शास्त्रों के अनुसार शिव को अर्धनारीश्वर भी माना जाता है. शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका आधा शरीर पुरुष और आधा स्त्री का है. शिव का अर्धनारीश्वर रूप मूल शृष्टि की रचना का कारक माना जाता है. शक्ति के बिना सृष्टि का निर्माण संभव नहीं है. अर्थात नारी के बिना किसी भी इंसान का सृजन संभव नहीं हो सकता है. शास्त्रों में भी संसार के सभी पुरुषों को शिव और स्त्रियों को शक्ति स्वरूप माना गया है. दोनों ही सृष्टि के मूल आधार माने जाते हैं और शिव में समाए हैं.
- शिव के शीश में विराजमान गंगा :- शिव की जटाओं में अथाह वेग वाली गंगा विराजमाम है. यदि शिव अपनी जटाओं में गंगा को धारण नहीं करते तो गंगा अपने वेग से पूरी सृष्टि का सर्वनाश कर देती. सृष्टि को गंगा के अथाह वेग से बचाने और विश्व का कल्याण करने के लिए शिव ने गंगा जैसी परम वेग वाली नदी को असली जटाओं में धारण किया.
- शिव के जटा जूट :- शास्त्रों में शिव की जटाओं की तुलना प्राचीन वट वृक्ष से की गयी है. जो सभी प्राणियों के विश्राम का केंद्र है. जिस प्रकार वट वृक्ष की शाखाएं अनगिनत होती है उसी प्रकार शिव की जटायें भी असंख्य हैं. ऐसा माना जाता है कि शिव की जटाओं में वायु का वेग समाहित है.
- शिव के सर पर विराजमान अर्धचंद्र :- शिव भगवान ने शाप युक्त चंद्रमा को सम्मान देने के लिए अपने शीश पर धारण किया था. शिव समय चक्र की गति से सभी को अवगत कराते हैं. सृष्टि के निर्माण और विनाश के मूल में समय प्रमुख होता है. चंद्रमा को समय की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है.
- शिव के त्रिनेत्र :- शिव को त्रयंबकं भी कहा जाता है. शिव की दाईं आंख में सूर्य का तेज, बाई आंख में चंद्र की शीतलता और माथे पर मौजूद तीसरे नेत्र में अग्नि की ज्वाला विद्यमान होती है. शिव भगवान दुष्टों और दुष्ट प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए अपने तीसरे नेत्र का इस्तेमाल करते हैं. शिव की तीसरी आँख हमेशा आधी खुली रहती है. जो उनके योगीश्वर होने का प्रमाण देती है.
- शिव शक्ति का स्वरूप त्रिशूल :- शिव अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं. त्रिशूल शिव की 3 मूलभूत शक्तियों में एक है. जिसमें इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान का प्रतीक मौजूद है. त्रिशूल से शिव प्राणी मात्र के दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों प्रकार के शूलों का नाश करते हैं. शिव अपने त्रिशूल से सत्व, रज और तम तीनों और उनके कार्य रूप स्थूल सूक्ष्म और कारण नामक देहत्रय का नाश करते हैं.
- शिव का डमरू :- शिव ने अपने एक हाथ में डमरू धारण किया हुआ है. डमरु ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है. जब शिव अपने डमरू का नाद करते हैं तो आकाश पाताल और पृथ्वी एक ही बंधन में बंध जाते हैं. इसी नाद को सृष्टि सृजन का मूल बिंदु माना जाता है.
- पिनाकपाणि :- शिव को पिनाकपाणि भी कहा जाता है. पिनाक एक ऐसा शक्तिशाली धनुष होता है जिसे शिव के अलावा सिर्फ वही धारण कर सकता है जो स्वयं शिव का अवतार हो या शिव का ही स्वरूप हो. इस धनुष के दंड में अनंत शक्ति विराजमान रहती है. उस शक्ति को दर्शाने या क्रियान्वित करने के लिए धनुष की एक तरफ प्रत्यंचा को दूसरी तरफ से मिलाना जरूरी होता है. इसी वजह से राजा जनक के राज महल में रखे शिव धनुष को जब माता सीता ने एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रख दिया तो उनके शिव स्वरूप होने का पता चला. जिसके फलस्वरूप सर्वशक्तिमान शिव के स्वरूप श्री राम ने आसानी से धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई.
- शिव के गले में विराजमान सर्प :- शिव के गले में हमेशा सांप लिपटे रहते हैं. जो उनके योगी स्वरूप को दर्शाते हैं. सांप कभी भी अपने घर का निर्माण नहीं करते हैं और ना ही जीवन यापन के लिए कुछ संचय करते हैं. सांप हमेशा मुक्त हवा और जंगलों में विचरण करता है. सर्प तीन बार शिव के गले में लिप्त रहता है. जो शिव के भूत, वर्तमान और भविष्य के दृष्टा होने का प्रतीक है. शास्त्रों में शक्ति की कल्पना कुंडली की आकृति से की गई है. इसलिए उसे कुंडलिनी भी कहा जाता है. यह शक्ति सर्वदा शिव के गले में लिपटी रहती है और जब उचित समय आता है तब प्रकट होती है.
- बाघम्बर :- शिव वस्त्र के रूप में सिर्फ बाघ की खाल पहनते हैं. बाघ मा शक्ति का वाहन भी है. इसीलिए शास्त्रों में शिव के वस्त्र को अतीव ऊर्जा शक्ति का प्रतीक माना जाता है.
- शिव के शरीर पर समाहित विभूति :- शिव अपने पूरे शरीर पर विभूति लगाते हैं. शमशान की भस्म से शिव का श्रृंगार किया जाता है. शिव सर्वशक्तिमान महाकाल का भी स्वरुप है जो जन्म मृत्यु के चक्र पर नियंत्रण रखने का काम करते हैं. शमशान की भस्म जीवन के सत्य को दर्शाती है.
- वृष वाहन :- वृष को अतः शक्ति का परिचायक माना जाता है. इसके अलावा वृष कामवृति का भी प्रतीक होता है. वृष संसार के सभी पुरुषों पर सवारी करता है और स्वयं शिव वृष पर सवारी करते हैं. शिव जितेंद्रिय हैं. यदि मनुष्य अपने उदार और व रसेन्द्रिय पर विजय प्राप्त कर ले तो वह सर्वशक्तिमान बन सकता है और पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर सकता है.
- कथासार :- इसी तरह शिव शक्ति के बहुत सारे स्रोत हैं. संसार की सबसे नष्ट चीजों को भी शिव अपने आप में ग्रहण कर लेते हैं. जैसे- भांग, धतूरा, विश जो सामान्य लोगों को हानि पहुंचाते हैं शिव इन चीजों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं.
- अगर शिव अपने गले में विष धारण नहीं करते तो देवता कभी भी अमृत प्राप्त नहीं कर पाते. इसी तरह देवताओं को अमरत्व का वरदान देने वाले शिव जब अपना रौद्र रूप धारण करते हैं तो उनकी शक्ति पर नियंत्रण कर पाना सभी देवताओं के लिए मुश्किल हो जाता है.
- शिव में शक्ति और सूझबूझ जैसा अनूठा संगम नजर आता है. जो आप कहीं और नहीं देख सकते हैं. यही वजह है कि शिव का व्यक्तित्व अन्य देवी-देवताओं से अलग नजर आता है. यही शिव शंभू भोलेनाथ की शक्ति का स्वरूप है.