नवग्रह चालीसा

नवग्रह का अर्थ नौ ग्रहों से है – ज्योतिष में पृथ्वी को आधार मानकर सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह माने गए हैं. हर व्यक्ति की कुंडली में ग्रह अपनी-अपनी भूमिका निभाते है. कोई शुभ फल प्रदान करता है तो कोई ग्रह कष्ट देने वाला भी होता है. हर ग्रह के कष्ट निवारण हेतु भिन्न-भिन्न उपाय भी होते है जो दान, जाप, हवन, पाठ आदि द्वारा किए जाते है. किन्तु कई बार कुंडली के योग ज्यादा ख़राब होते है या दशाक्रम इतना अच्छा नहीं होता की शुभ फल मिल पाए. यदि जन्म कुंडली में कोई भी ग्रह अनुकूल फल प्रदान नहीं कर रहा है तब नवग्रह की पूजा का विधान बताया गया है. नवग्रह पूजा के साथ कुछ लोग नवग्रह मन्त्र जाप का उपाय भी बताते हैं, जिसका नियमित जाप प्रतिकूल प्रभाव को कम करता है.

नवग्रह पूजा व नवग्रह मन्त्र जाप के अलावा एक अचूक और सरल उपाय नवग्रह चालीसा का पाठ करना भी है. यदि किसी भी जातक अथवा जातिका को नवग्रह की शान्ति करनी है तो नियमित रूप से उसे नवग्रह चालीसा का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से सभी ग्रहों की शांति होगी और ग्रह अपना शुभ फल प्रदान करेंगे.

नवग्रह चालीसा का पाठ करने में ज्यादा ख़र्च भी नहीं होता और लगातार तीन महीने तक इस पाठ को करने पर ही शुभ फल मिलने आरम्भ हो जायेंगे. इस पाठ को किसी शुभ मुहूर्त में शुभ दिन में आरम्भ करना चाहिए. नवग्रह चालीसा में नौ ग्रहों की स्तुति की जाती है तो पाठ शुरू करने से पहले नौ ग्रहों के लिए नौ दीपक जलाना चाहिए फिर अपने मन में नौ ग्रहों का ध्यान करते हुए पाठ शुरू करना चाहिए. व्यक्ति जितनी श्रद्धा व विश्वास के साथ ये पाठ करेगा उतना शीघ्र उसे सफलता मिलनी आरम्भ होगी. मार्ग की बाधाएं दूर होगी और वह अपने लक्ष्य को शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करेगा.

चौपाई

श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय।

नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय।।

जय जय रवि शशि सोम बुध जय गुरु भृगु शनि राज।

जयति राहु अरु केतु ग्रह करहुं अनुग्रह आज।।

 

श्री सूर्य स्तुति  

प्रथमही रवि कहं नावों माथा, करहु कृपा जन जानि अनाथा,

हे आदित्य दिवाकर भानु, मै मति मन्द महा अज्ञानु,

अब निज जन कहं हरहु क्लेशा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा,

नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर !!

 

श्री चन्द्र स्तुति 

शशि मयंक रजनी पति स्वामी, चंद्र कलानिधि नमो नमामि,

राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहु कलेशा,

सोम इंदु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर ,

तुम्ही शोभित सुंदर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहु कलेशा !!

 

श्री मंगल स्तुति 

जय जय मंगल सुखा दाता, लोहित भौमादिक विख्याता ,

अंगारक कुंज रुज ऋणहारि, करहु दया यही विनय हमारी ,

हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांगा जय जन अघनाशी ,

अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै !!

 

श्री बुध स्तुति 

जय शशि नंदन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहं शुभ काजा,

दीजै बुद्धिबल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरी करी कल्याणा ,

हे तारासुत! रोहिणी नंदन! चंद्र सुवन दु:ख द्वंद निकन्दन,

पूजहु आस दास कहुं स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामि !!

 

श्री बृहस्पति स्तुति  

जयति जयति जय श्री गुरु देवा, करहु सदा तुम्हरी प्रभु सेवा,

देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्या दानी,

वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा,

विद्या सिन्धु अंगीरा नामा, करहु सकल विधि पूरण कामा !

 

श्री शुक्र स्तुति 

शुक्र देव पद तल जल जाता, दास निरंतर ध्यान लगाता,

हे उशना भार्गव भृगु नंदन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन,

भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहु नैष्ट ग्रह करहु सुखारी,

तुही द्विजवर जोशी सिरताजा, नर शरीर के तुम्हीं राजा !!

 

श्री शनि स्तुति  

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।

पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महं करत रंक क्षण राजा।

ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहुं विपत्ति छाया के लाला।

 

श्री राहु स्तुति  

जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।

रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा।

यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।

 

श्री केतु स्तुति  

जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी।

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।

शिखी तारिका ग्रह बलवान, महा प्रताप न तेज ठिकाना।

वाहन मीन महा शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी।

 

नवग्रह शांति फल  

तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा।

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।

नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू।

जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।।

 

दोहा  

धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार।

चित नव मंगल मोद गृह जगत जनन सुखद्वार।।

यह चालीसा नवोग्रह, विरचित सुन्दरदास।

पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास।।

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