जानिए क्यों की जाती है मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा

दिवाली के त्यौहार पर हमेशा मां लक्ष्मी के साथ गणेश भगवान की भी उपासना की जाती है. जबकि हमारे धर्म ग्रंथों और संस्कृति के अनुसार मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जानी चाहिए. इसलिए यह सोचने का विषय है की ऐसा क्यों किया जाता है…… यह बात सभी जानते हैं कि दीपावली धन समृद्धि और ऐश्वर्य का त्यौहार होता है. तथा इस दिन धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, पर यह बात भी उतनी ही सत्य है कि बिना बुद्धि के धन का होना व्यर्थ माना जाता है. इसलिए दीपावली के दिन धन की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी और बुद्धि की प्राप्ति के लिए गणपति भगवान की पूजा करने का नियम है.

भगवान गणेश सिद्धि दायक देवता माने जाते हैं. गणेश जी की पूजा करने से जीवन मंगलमय निर्विघ्न और शांति पूर्वक व्यतीत होता है. लिंग पुराण में गणेश जी के विषय में भगवान शिव के मुख से कहलवाया गया है कि “हे विघ्न विनाशक, विघ्न गणों के स्वामी होने की वजह से आप त्रिलोक में सर्वत्र वंदनीय और पूज्य होगे. जो भी मनुष्य अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए अन्य देवी देवताओं की पूजा उपासना करेगा उसे भी सर्वप्रथम आपकी पूजा करनी पड़ेगी तभी उनकी पूजा सफल होगी. अन्यथा उन्हें समस्त प्रकार के विघ्नो का सामना करना पड़ेगा. इस तरह गणेश, गणपति, गणेश्वर, विघ्नेश्वर के रूप में प्रसिद्ध हुए और तभी से गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा और साधना का विधान बन गया.

लक्ष्मी माता के साथ भगवान गणेश की पूजा के संबंध में बहुत सारी किवदंतिया प्रचलित है. एक किवदंती के अनुसार एक साधु ने लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की और साधु की तपस्या से मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुई. साधु की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ लक्ष्मी ने साधू से एक वरदान मांगने को कहा. तब साधु ने मां लक्ष्मी से शाही ठाठ बाठ से जीवन व्यतीत करने की इच्छा व्यक्त की. मां लक्ष्मी ने साधू को मनचाहा वरदान दिया और तथास्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गई.

मां लक्ष्मी का वरदान पाने के पश्चात साधु राज दरबार में गया और राजा के पास जाकर एक झटके में उसके मुकुट को भूमि में गिरा दिया. साडू की ऐसी हरकत देखकर राजा बहुत क्रोधित हुआ. परंतु तभी उसने राजमुकुट से बाहर निकलते हुए बिच्छू को देखा. यह देखकर राजा के मन में सन्यासी के लिए बहुत श्रद्धा उत्पन्न हुई और राजा ने साधु को अपना मंत्री बनने के लिए कहा. सन्यासी की भी यही इच्छा थी. उसने तुरंत राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. सन्यासी के परामर्श से राज्य का कार्य सही तरीके से चलने लगा.

1 दिन उस सन्यासी ने राज्य दरबार में मौजूद सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा. सभी लोग सन्यासी पर पूर्ण विश्वास रखते थे इसलिए राजा के साथ समस्त दरबारी भी राज महल से बाहर निकलकर मैदान में चले गए. तभी राजमहल की सभी दीवारें गिर गई. अब राजा की आस्था उस सन्यासी के ऊपर और भी बढ़ गई. अब राजा राज्य के समस्त कार्य सन्यासी के संकेतों पर ही करने लगा. यह देखकर सन्यासी के अंदर घमंड आ गया. राज महल के अंदर भगवान गणेश की एक मूर्ति स्थापित थी.

घमंड की वजह से सन्यासी ने सेवकों को उस मूर्ति को वहां से हटाने का आदेश दिया,क्योंकि सन्यासी के विचार में वह मूर्ति महल की शोभा बिगाड़ रही थी. अगले दिन मंत्री बने सन्यासी ने राजा से कहा कि वह अपनी पोशाक उतार दें क्योंकि उनकी पोशाक में नाग है. राजा सन्यासी पर अटूट विश्वास करता था. इसलिए दरबार में दरबारियों के मौजूद होने के बावजूद राजा ने सन्यासी के कहने पर अपनी पोशाक उतार दी. परंतु उसकी पोशाक में कोई भी नाग नहीं था.

यह देखकर राजा को सन्यासी के ऊपर बहुत क्रोध आया और उसने सन्यासी को बंदी बनाने का आदेश दिया. कारागार में कैदियों की तरह कुछ दिन व्यतीत करने पर सन्यासी परेशान हो गया. उसने फिर से मां लक्ष्मी की तपस्या करनी आरंभ की. माँ लक्ष्मी ने सन्यासी के सपने में उसे दर्शन दिए और कहा तुम्हारी ऐसी दुर्दशा गणेश जी का अपमान करने के कारण हुई है. गणेश जी बुद्धि के देवता है इसलिए उनको नाराज करने से तुम्हारी बुद्धि पूर्ण रूप से भ्रष्ट हो गई.

अब सन्यासी ने अपनी गलती का एहसास करते हुए पश्चाताप करने की ठानी और भगवान गणेश से क्षमा मांगी. अगले दिन राजा ने वहां पहुंचकर साधु को कारागार से मुक्त कर दिया और फिर से मंत्री पद पर बहाल कर दिया. सन्यासी ने पुनः गणेश जी की मूर्ति को श्रद्धा पूर्वक स्थापित करवाया और उनके साथ साथ में लक्ष्मी की पूजा भी आरंभ की. जिससे धन और बुद्धि दोनों साथ साथ रह सकें. तभी से दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का नियम चला रहा है.

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