गाय की सेवा और व्रत करने से मिलता है ब्रह्म ज्ञान

हमारे पुराणों उपनिषदों और शास्त्रों में ब्रह्म ज्ञान पाने के लिए कठिन से कठिन साधनों का उल्लेख किया गया है. मनुष्य का दिमाग इस गूढ़ रहस्य को समझने में पूरी तरह से असमर्थ है, पर सद गुरुओं की कृपा धन्य है जिन्होंने गाय सेवा का एक ऐसा व्रत बताया है जिस व्रत को करने से आसानी से ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है. गाय की सेवा के बारे में बताया गया है

तीर्थ शतानेषु यत पुण्यं यत पुण्यं विप्र भोजन यत पुण्यं च महादाने यत पुण्यं हरी सेवने सर्वव्रतोपवासेशु सर्वेष्वेव तपह सु च भूमिपरीतने यन्तु सतयवाक्येषु यद भवेत् तत पुण्यं प्राप्यते साध्य केवलं धनु सेवया

अर्थात गौ माता का स्थान सर्वश्रेष्ठ होता है. इसलिए शास्त्रों में बताया गया है माता से बढ़कर गौ माता होती है.

गौमाता का महत्व :-

1- गरुण पुराण में बताया गया है कि वैतरणी पार करने के लिए गोदान से अच्छा कोई दान नहीं है. श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया जाता है. क्योंकि गाय के दूध से बनी खीर  से पितर तृप्त होते हैं.

2- स्कंद पुराण में बताया गया है गौर देवमई और वेद सर्व गोमय है. श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में बताया है धेनुनामस्मि  कामधेनु अर्थात गायों में मैं कामधेनु हूं. श्रीराम ने वन जाने से पहले त्रिजट नामक ब्राम्हण को गाय का दान किया था.

गाय का पौराणिक और धार्मिक पक्ष :-

1- गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने ही गाय की.नयी प्रजातियों का निर्माण किया  उस समय गाय की सिर्फ 8 या 10 नस्ले ही थे. जिनके नाम कामधेनु, कपिला, देवीन, नंदिनी, भोमा आदि था.

2- भगवान श्री कृष्ण ने गाय के महत्व की बढ़ोतरी के लिए गाय पूजा और गौशालाओं के निर्माण को बढ़ावा दिया था.

3- भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यकाल से ही गाय चराने का कार्य गोपाष्टमी  के दिन से आरंभ किया था.

4- हिंदू धर्म में बताया गया है गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है. कोटि का अर्थ करोड़ नहीं प्रकार होता है. अर्थात गाय के अंदर 33 प्रकार के देवी देवता वास करते हैं.

5- शास्त्रों और विद्वानों ने बताया है की कुछ पशु पक्षी ऐसे होते हैं जो आत्मा के विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं. उन्हीं में से गाय भी एक है. इसके बाद उस आत्मा मनुष्य योनि में जन्म लेती है.

6- यदि बली के लिए जा रही गाय को छुड़ाकर उसका पालन-पोषण और सेवा की जाए तो व्यक्ति को गौ यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है.

7- शास्त्रों के अनुसार बिल्वपत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय होता है. बेलपत्र की उत्पत्ति ही गाय के गोबर से ही हुई थी.

8- ऋग्वेद में गाय को अघन्या कहा गया है. यजुर्वेद के अनुसार गाय अनूपमेय है. अथर्ववेद में गाय को संपत्तियों का घर बताया गया है.

9- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गाय साक्षात विष्णु का स्वरूप होती है. भगवान श्री राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नंदिनी गाय का पूजन करते थे.

गाय माता का स्वरूप :-

1- जो मनुष्य गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी संकट दूर हो जाते हैं. गौमाता के खुरों में नाग देवता का वास होता है.

2- जिस जगह पर गौमाता रहती हैं वहां पर सांप बिच्छू नहीं आते हैं. शास्त्रों के अनुसार गौ माता के गोबर मे लक्ष्मी जी का वास होता है.

3- गौमूत्र में गंगा जी का वास होता है. गौ माता के गोबर से बने उपलों की धूप जलाने से घर, दुकान और मंदिर का वातावरण शुद्ध हो जाता है.

4- गौमाता की एक आंख में सूर्य और दूसरी आंख में चंद्र देव निवास करते हैं. गौ माता का दूध अमृत के समान होता है. यह दूध बहुत ही पोषक होता है और सब प्रकार की बीमारियों से बचाव करता है.

5- गौमाता की पूछ में हनुमान जी का वास होता है. जो मनुष्य तन मन धन से गौ सेवा करता है वह गौमाता की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करता है.

कथा :-

हमारे शास्त्रों में गाय से जुड़ी एक कथा प्रचलित है. बहुत समय पहले सत्यकाम नाम का एक छोटा सा बालक था. उसके घर में सिर्फ उसकी माता ही थी जो उसकी रक्षा और पालन करती थी. जब बालक 12 वर्ष का हो गया तब उसने अपनी माता से कहा कि मां मैं अब 12 वर्ष का हो गया हूं. अब मुझे गुरुकुल जाकर वेदों का अध्ययन करना चाहिए. उसकी बात सुनकर मां ने बोला अच्छा बेटा जाओ और गुरुकुल में जाकर वेदों का अध्ययन करो. तुम्हारा कल्याण हो. सत्य काम ने कहा परंतु गुरुदेव अगर मुझसे मेरा गोत्र पूछेंगे तो मैं क्या उत्तर दूंगा. मुझे अपने गोत्र के बारे में कोई ज्ञान नहीं है. इसलिए आप मुझे मेरा गोत्र बता दो. माता ने कहा बेटा सत्य काम गोत्र का पता तो मुझे भी नहीं है. मैंने हमेशा अतिथियों का सत्कार किया. युवावस्था में जब तेरा जन्म हुआ तब संकोच के कारण मैंने कभी भी तुम्हारे पिता से गोत्र के विषय में नहीं पूछा.

मां की बात सुनने के बाद सत्य काम वेदों का अध्ययन करने के लिए हारी द्रुमत ऋषि के आश्रम गया और उन्हें प्रणाम  करने के पश्चात उनके चरणों में बैठ गया, तो ऋषि ने पूछा बालक तुम क्या चाहते हो. सत्य काम ने कहा हे भगवान मैं आपके चरणो में रहकर वेदों का ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं. ऋषि ने पूछा तुम्हारा गोत्र क्या है. सत्य काम बोला भगवान मैंने अपनी माता से गोत्र के विषय में पूछा था तब उन्होंने उत्तर दिया मैं सर्वदा अतिथियों की सेवा में रहती थी .युवावस्था में तेरा जन्म हुआ मुझे नहीं पता कि तेरे पिता का गोत्र क्या है? मुझे बस इतना ही पता है कि तेरा नाम सत्य काम है और तू मुझ जबाला का पुत्र है. यह सुनने के बाद महर्षि बहुत प्रसन्न हुए और बोले बेटा अवश्य ही तू ब्राम्हण है. क्योंकि ब्राह्मणों के अतिरिक्त इतनी सत्य बात कोई भी नहीं कह सकता है.

तू समिधा लेकर आ मैं तेरा उपनयन करता हूं. तू आज से ही सत्य काम जबाला के नाम से जाना जाएगा. ऋषि की बात सुनने के पश्चात सत्य काम समिधा लेकर आया. ऋषि ने अपने शिष्य का विधिपूर्वक उपनयन संस्कार किया. उस समय गाय को ही धन के समान माना जाता था. जिसके यहां जितनी ज्यादा गाय होती थी वह उतना ही बड़ा श्रेष्ठ होता था. दान, धर्म, पारितोषिक, शास्त्रार्थ, यज्ञ और सभी देवपु पुण्य तथा ऋषि ऋणों में गाय का दान ही किया जाता था. ऋषियों के निकट जो शिष्य शिक्षा प्राप्त करने आते थे उन्हें सबसे पहले गाय की सेवा का व्रत दिया जाता था. गाय की सेवा करने से उन्हें अपने आप ही सर्व शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता था. ऋषि हारीद्रुमत के आश्रम में भी बहुत सारी गायें थी. सत्य काम का उपनयन संस्कार होने के बाद ऋषि उसे गायों की गोष्ट में लेकर गए.

बहुत सारी दुधारू गायों में से मुनि ने 400 दुबली पतली गायो को छाँटकर निकाला और सत्य काम से कहा बेटा तू इन गायों को लेकर चराने जा और इन्हें स्वस्थ और तंदरुस्त करके ला. सत्य काम 12 वर्ष का छोटा सा बालक था. गुरु के अंतर भाव को जानने के बाद उसने कहा भगवन मैं इन गायों को लेकर जाता हूं और जब तक यह स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक मैं लौट कर नहीं आऊंगा. गुरु ने तथास्तु कहकर उसे विदा किया. सत्य काम उन गायों को लेकर ऐसे वन में गया जहां बहुत सारी हरी घास और जल पर्याप्त मात्रा में था और जंगली जानवरों का कोई डर नहीं था. वह गायों के बीच में ही रहने लगा और हमेशा उनकी सेवा करने लगा. वन में रहकर सभी कष्टों को सहने के साथ गाय के दूध से अपना जीवन निर्वाह करने लगा.

सत्य काम गौ सेवा में इतना मगन हो गया कि उसे इस बात का पता ही नहीं चला कि गायों की संख्या कितनी हो गई है. तब वायु देव वृषभ का रूप धारण करके सत्य काम के पास आए और बोले सत्यकाम अब हम सहस्त्र हो गए हैं. अब तुम हमें गुरुदेव के आश्रम ले चलो और मैं तुम्हें एक पाद ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करूंगा. यह कहने के बाद धर्म रूपी वृषभ ने सत्य काम को एक पाद ब्रह्म का उपदेश दिया. सत्यकाम गायों को लेकर गुरु के आश्रम से बहुत दूर चला गया था. चार दिनों का मार्ग तय करने के  मध्य सत्य काम जहां-जहां रुका वहां वहां उसे ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस तरह पहले पाद का वृषभ ने, दूसरे पाद का अग्नि देव ने, तीसरे का हंस ने और चौथे का उपदेश मृदुल नामक जलचर पक्षी ने दीया.

गायों की निष्काम भावना से सेवा करने से सत्य काम परम तेजस्वी और ब्रह्म ज्ञानी हो गया था. सत्यकाम ने सहस्त्र गायों को ले जाकर गुरु के सम्मुख प्रस्तुत किया और उनके श्री चरणों में प्रणाम किया. गुरु ने सत्य काम के मुख् मंडल को देदीप्यमान देखकर बहुत ही प्रसन्नता से कहा पुत्र, तुम्हारा मुख् मंडल देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हें ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, तुम मुझे सत्य बताओ कि तुम्हें ब्रह्म ज्ञान का उपदेश किसने दिया. तब सत्यकम ने बहुत ही विनीत भाव से कहा गुरुदेव आपकी कृपा से सब कुछ हो सकता है. आप जब मुझे उपदेश देंगे तभी मेरा ज्ञान संपूर्ण होगा. वही ज्ञान गुरु ने भी दोहराया और सत्य काम पूर्ण ब्रह्म ज्ञानी हो गए.

इसीलिए आज से अभी से गाय की सेवा का व्रत अपने जीवन में धारण करें. गाय सेवा ही जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, को पूर्ण रूप से प्रदान करती है.

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