कुंडली में पितृदोष होने के कारण और उपाय

किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय उसकी कुंडली में बहुत सारे योग  मौजूद होते हैं. कुंडली में मौजूद ये योग  कभी अच्छे और कभी बुरे होते हैं. कभी-कभी यह योग मिश्रित फल देने वाले भी होते हैं. अक्सर कुंडली में कुछ ऐसे योग भी  होते हैं जिनके होने से मनुष्य के पास सब कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है. कुंडली में मौजूद बुरे योगो का कारण हमारे पूर्वजों की अतृप्त आत्माएं हो सकती हैं. क्योंकि यदि आत्माएं या पूर्वज तृप्त नहीं होती है तो मनुष्य कभी भी अपना जीवन सुख पूर्वक नहीं बिता सकता है. इसीलिए यदि आप सौभाग्य और समृद्धि पाना चाहते हैं तो पूर्वजों की आत्माओं की शांति बहुत ही आवश्यक है. यदि आपके आसपास अच्छी आत्माएं मौजूद है तो आपके आसपास हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, पर अगर आपके आसपास कोई बुरी आत्मा मौजूद है तो आपको हर वक्त नकारात्मकता का एहसास होता है.  किसी भी व्यक्ति की कुंडली के द्वारा पितृदोष  का पता चल सकता है.

कुंडली में पित्र दोष होने के कारण:-

  • शास्त्रों में बताया गया है जब भी किसी मनुष्य का जन्म इस संसार में होता है तो उसके भाग्य का निर्धारण पहले से ही हो जाता है.
  • मनुष्य के जन्म के समय के अनुसार ज्योतिष विद्या के माध्यम से ग्रहों और नक्षत्रों को ध्यान में रखते हुए कुंडली का निर्माण किया जाता है.
  • ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष को अशुभ और दुर्भाग्य कारक माना गया है. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य, चंद्र, राहु या शनि में दो कोई एक ही घर में मौजूद हो तो पितृदोष होता है.
  • पितृदोष होने पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
  • कुंडली में मौजूद गुरु शनि और राहु पिछले जन्म से जुड़े कर्मों के बारे में बताते हैं. अगर आपकी कुंडली में शनि और राहु एक ही भाव में बैठे हो और साथ ही गुरु की दृष्टि भी पड़ रही हो तो इसका अर्थ है कि आपकी कुंडली में पितृदोष का असर है. ऐसे ही यदि लग्न में गुरु मौजूद है तो आपके ऊपर आत्माओं का आशीर्वाद बना रहता है.
  • अगर लग्न का गुरु खराब राशि या दोष युक्त है तो यह परिस्थिति खराब हो सकती है. इस दोष को दूर करने के लिए हर अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर दूध अर्पित करना चाहिए और साथ ही दूध और मिठाई का दान भी करना चाहिए.
  • यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि लग्न में है तो ऐसे लोगों को युवावस्था में बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है. ऐसे लोगों के साथ अच्छी और बुरी आत्माएं हमेशा रहती हैं.
  • यदि कुंडली में द्वितीय या अष्टम भाव में गुरु मौजूद है तो ऐसा मनुष्य पिछले जन्म में बहुत ही सज्जन होता है, पर किसी अतृप्त इच्छा की वजह से उसे दोबारा से मनुष्य का शरीर धारण करना पड़ता है.
  • इस बात को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जो लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं उनके ऊपर हमेशा ऊपरी शक्तियों की कृपा बनी रहती है. धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हमेशा सुखी और प्रसन्न रहते हैं और अपना पूरा जीवन सुख पूर्वक जीने के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करते हैं.
  • जिन लोगों की कुंडली में शनि दूसरे स्थान में मौजूद होता है, ऐसे लोग पिछले जन्म में कमजोर लोगों को परेशान करने वाले होते हैं. जिसका फल उन्हें अगले जन्म में भुगतना पड़ता है.
  • कुंडली में शनि का उच्च स्थान पर मौजूद होना शरीर में आत्माओं का वास कराता है और व्यक्ति लंबे समय तक परेशान रहता है. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु दोष है तो वह व्यक्ति हमेशा मानसिक रूप से परेशान रहता है.
  • कुंडली में गुरु का तृतीय भाव में होना अच्छा माना जाता है. ऐसे लोगों पर सती हुई महिला का आशीर्वाद बना रहता है.
  • यदि कुंडली में गुरु दोष है तो ऐसे लोगों पर पूर्वजों का श्राप रहता है. इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कुलदेवी की पूजा करनी चाहिए.
  • जिन लोगों की कुंडली में राहु या शनि तृतीय भाव में मौजूद होते हैं उन्हें किसी भी घटना का पूर्वाभास हो जाता है. अगर कुंडली में गुरु चतुर्थ भाव में मौजूद हो तो इसका अर्थ यह है कि आपका पुनर्जन्म अपने ही खानदान में दोबारा हुआ है.
  • अगर कुंडली में गुरु दोष है तो व्यक्ति को हमेशा अज्ञात भय बना रहता है और कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस दोष को दूर करने के लिए हर साल पूर्वजों की समाधि पर पूजा करवाएं.
  • अगर किसी व्यक्ति के पूर्वज सर्प योनि में हैं तो उन्हें पानी, सांप, अंधेरे या सुनसान जगह से डर लगता है. ऐसे लोगों को नियमित रूप से सर्प पूजन करना चाहिए. इसके अलावा नागपंचमी और शिवरात्रि के दिन किसी भी नदी के किनारे बैठकर सर्प छुड़वाने की प्रक्रिया करनी चाहिए.
  • कुंडली में नवम भाव में गुरु मौजूद होने पर व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का होता है और उसके ऊपर उसके पूर्वजों का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है, और जैसे-जैसे उस व्यक्ति की उम्र बढ़ती है उनके अंदर ज्ञान और परोपकार बढ़ता जाता है
  • कुंडली में दशम भाव में गुरु मौजूद हो तो यह एक बहुत ही अच्छा संकेत होता है. ऐसे लोग हमेशा धर्म-कर्म में रूचि रखने वाले होते हैं और पापों से दूर रहते हैं.
  • अगर कुंडली में दशम भाव में गुरु के साथ-साथ नवम या एकादश भाव में राहु या शनि मौजूद है तो ऐसे लोग दुराचारी होने के बावजूद ईश्वर की भक्ति करते हैं. कुंडली में एकादश भाव में गुरु मौजूद होने से व्यक्ति गुप्त विद्या का जानकार होता है, पर ऐसे लोग अक्सर अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हैं.
  • कुंडली में द्वादश भाव में गुरु या उसके साथ शनि और राहु मौजूद हो तो ऐसे लोग पिछले जन्म में धर्मस्थल के दोषी होते हैं. लेकिन इस जन्म में वह धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं. ऐसे लोगों को शराब का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • अगर कुंडली में द्वादश भाव में शनि मौजूद हो तो ऐसे लोगों पर हमेशा सांप का आशीर्वाद बना रहता है. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि दोष हो तो उसे नियमित रूप से शंकर भगवान की पूजा करनी चाहिए.
  • अगर कुंडली में शनि राहु साथ साथ हो या अकेले ही अन्य भागों में मौजूद हो तो यह पूर्व जन्म से जुड़ा हुआ हो सकता है. जैसे अगर कुंडली में पंचम भाव में शनि राहु मौजूद है तो व्यक्ति को किसी हथियार से चोट लगने की संभावना हो सकती है और साथ ही ऐसा व्यक्ति संतान सुख से वंचित रहता है. ऐसे लोग अक्सर पेट से जुड़े रोगों से पीड़ित रहते हैं.

कुंडली से पितृ दोष दूर करने के उपाय

  • अगर आप पित्र दोष दूर करना चाहते हैं तो श्राद्ध पक्ष में तर्पण श्राद्ध करें.
  • पित्र दोष दूर करने के लिए पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्थी, अमावस्या, पूर्णिमा तिथि को पितरो के नाम से दान करें. घर में भगवत गीता के 11 अध्याय का पाठ करें.
  • पित्र दोष दूर करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा करें. पीपल के पेड़ को मीठा जल अर्पित करें और नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाकर परिक्रमा करें.
  • अगर आप पित्र दोष को दूर करना चाहते हैं तो रोजाना हनुमान बाहुक का पाठ करें. इसके अलावा रुद्राभिषेक और देवी का पाठ भी करें.
  • पित्र दोष को दूर करने के लिए गाय को हरी घास, पक्षियों को अनाज और चीटियों को रोजाना मीठा खिलाएं. नियमित रूप से तांबे के पात्र से सूर्य को जल अर्पित करें.

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